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In a shocking incident, Sridevi breathed her last in Dubai on Sunday morning. धनी पुरुष निर्धन भये , करे पाछिली बात ||, अर्थ – रहीम दास जी कहते हैं कि क्वार के महीने में जो बादल होते हैं वो केवल गड़गड़ाहट की आवाज करते हैं लेकिन उनमें पानी नहीं होता ठीक वैसे ही धनी इंसान निर्धन हो जाने के बाद भी अपना अमीरी का घमंड नहीं छोड़ता और पिछली बातों को याद कर करके घमंड करता है लेकिन मनुष्य को हर परिस्थिति में एक ही जैसा व्यव्हार करना चाहिए।, रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय. इन दोहों का संकलन इस प्रकार किया गया है की ये class 6 से लेकर class 12 तक के students के लिए समान रूप से उपयोगी हैं.

दोहा – “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग | चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग |”, अर्थ : रहीम ने कहा की जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगती भी बिगाड़ नहीं पाती, जैसे जहरीले साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष को लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं दाल पाते |, 18. Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. One of the best city to visit in Eastern Europe. दोहा :- “दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय |”, अर्थ : दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं. सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात. Abdul Rahim Khan-e-Khana was popularly known as Rahim and was one of the Navratnas , nine jewels, of Mughal emperor Akbar’s court. Solar power is the last energy resource that isn't owned yet - nobody taxes the sun yet.- Bonnie Rait.

25+ रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Rahim Ke Dohe with meaning जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग. रहीम दास जी का पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था। इनका जन्म 7 दिसम्बर 1556 को लाहौर में हुआ था। इनके पिता का नाम बैरम ख़ाँ और माँ का नाम सुल्ताना बेगम था। इनके पिता अकबर के संरक्षक थे।, रहीम के दोहे हम बचपन से किताबों में पढ़ते आते हैं। कबीर दास जी के बाद सबसे ज्यादा रहीम दास जी के दोहे ही प्रसिद्ध हैं। इनके सभी दोहे बहुत ही प्रेरक हैं और हर व्यक्ति को अच्छे जीवन का सन्देश देते हैं।, देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन ।
100+ rahim ke dohe with hindi meaning- रहीम के दोहे नामक इस संग्रह में रहीमदास के प्रमुख दोहों का अर्थ सहित वर्णन किया गया है. दोहा – “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर |”, अर्थ : बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की उससे किसी का भला हो. दोहा – “मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय | ‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय |”, अर्थ : सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? अर्थ:- रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा.

रहिमन राम न उर धरै, रहत विषय लपटाय।पसु खर खात सवादसों, गुर गुलियाए खाय॥31॥, अर्थ- मनुष्य विषयों से प्रेम करता है। राम नाम से नहीं। जिस प्रकार पशु घास तो बड़े स्वाद से कहता है। लेकिन मीठा गुड़ उसको जबरदस्ती खिलाना पड़ता है।, रहिमन रिस को छाँड़ि कै, करौ गरीबी भेस।मीठो बोलो नै चलो, सबै तुम्‍हारो देस।32॥, अर्थ- क्रोध का त्याग कर देना चाहिए। न मानो तो गरीब का वेश धारण कर के मीठी वाणी बोलकर देखो। सभी तुम्हारे हितैषी लगेंगे।, रहिमन लाख भली करो, अगुनी अगुन न जाय।राग सुनत पय पिअत हू, साँप सहज धरि खाय॥33॥, अर्थ- चाहे जितना भलाई का काम करो। लेकिन दुष्ट व्यक्ति की दुष्टता नहीं जाती। जैसे सांप को कितना भी राग सुनाओ और दूध पिलाओ। लेकिन मौका मिलने पे वह काट ही लेता है।, रहिमन वित्‍त अधर्म को, जरत न लागै बार।चोरी करी होरी रची, भई तनिक में छार॥34॥, अर्थ- अधर्म से प्राप्त किया धन नष्ट होते देर नहीं लगती। जिस प्रकार चोरी की लकड़ी से होली सजाई जाती है। जो थोड़ी देर में ही जलकर राख हो जाती है।, रहिमन विद्या बुद्धि नहिं, नहीं धरम, जस, दान।भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिनु पूँछ बिषान॥35॥, अर्थ- जिसके पास विद्या, बुद्धि, धर्म, यश और दान नहीं है। इस धरती पर उसका जन्म व्यर्थ है। बिना सींग, पूंछ के वह पशु के समान है।, रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥36॥, अर्थ- थोड़े दिन की विपत्ति भी ठीक ही होती है। उससे अच्छे बुरे की पहचान हो जाती है।, रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥37॥, अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं कि वे लोग मृतक समान हैं जो कहीं मांगने जाते है। लेकिन जो लोग मांगने पर भी मना कर देते हैं। वे उनसे भी पहले मर चुके हैं।, रहिमन सीधी चाल सों, प्‍यादा होत वजीर।फरजी साह न हुइ सकै, गति टेढ़ी तासीर॥38॥, अर्थ- शतरंज के खेल में सीधी चाल चलने वाला प्यादा वजीर बन जाता है। लेकिन टेढ़ी चाल चलने वाला ऊंट राजा नहीं बन सकता।, बरु रहीम कानन भलो, बास करिय फल भोग।बंधु मध्‍य धनहीन ह्वै बसिबो उचित न योग॥39॥, अर्थ- जंगल में रह कर फल भोगना अच्छा है। लेकिन भाई बंधुओं के बीच धनहीन होकर रहना उचित नहीं है।, बिधना यह जिय जानि कै, सेसहि दिये न कान।धरा मेरु सब डोलि हैं, तानसेन के तान॥40॥, अर्थ- ब्रम्हा ने अच्छा किया कि शेषनाग को कान नहीं दिए। नहीं तो तानसेन की तान पर शेषनाग के साथ धरती और पर्वत भी हिलने लगते।, वे रहीम नर धन्‍य हैं, पर उपकारी अंग।बाँटनेवारे को लगे, ज्‍यों मेंहदी को रंग॥41॥, अर्थ- जो परोपकार करते हैं, वे लोग स्वयं भी धन्य हो जाते हैं। जैसे मेंहदी पीसने वाले के हाथ में भी लग जाती है।, सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम॥42॥, अर्थ- इस संसार से जाने का नगाड़ा तो आठों पहर बजता रहता है। यहां हमेशा के लिए कोई नहीं रहता।, सब को सब कोऊ करै, कै सलाम कै राम।हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥43||, समय परे ओछे बचन, सब के सहै रहीम।सभा दुसासन पट गहे, गदा लिए रहे भीम॥44॥, अर्थ- बुरा समय होने पर नीच वचनों को भी सह लेना चाहिए। जिस प्रकार भरी सभा में दुशासन द्रौपदी के वस्त्र खींच रहा था। गदाधारी भीम चुपचाप बैठे थे।, समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताय॥45॥, अर्थ- सही समय पर ही पेड़ों पर फल लगते हैं और अपने समय पर गिर भी जाते हैं। समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं।, समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक॥46॥, अर्थ- सही समय का लाभ उठाने से बड़ा कोई लाभ नहीं है। समय पर चूक जाने से बड़ी कोई चूक नहीं है। चतुर लोगों को समय पर चूक जाना बहुत खलता है।, साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।रहिमन साँचै सूर को, बैरी करै बखान॥47॥, अर्थ- सज्जन व्यक्ति सज्जनता की बड़ाई करता है, योगी योग्यता की। जो सच्चा वीर होता है, उसकी बड़ाई उसके शत्रु करते हैं।, सौदा करो सो करि चलौ, रहिमन याही बाट।फिर सौदा पैहो नहीं, दूरी जान है बाट॥48॥, अर्थ- रहीम कहते हैं कि ईश्वर का भजन करने का यही सही समय है। नहीं रास्ता बहुत लंबा है। बाद में समय नहीं मिलेगा।, होय न जाकी छाँह ढिग, फल रहीम अति दूर।बढ़िहू सो बिनु काज ही, जैसे तार खजूर॥49॥, अर्थ- ऐसे बड़े होने का क्या अर्थ जिसका कोई लाभ न हो। जैसे खजूर का पेड़। जिसकी छाया भी नहीं होती है और फल भी बहुत ऊंचाई पर लगते हैं।, रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीति।काटे चाटै स्‍वान के, दोऊ भाँति विपरीति॥50॥, अर्थ- नीच लोगों से न बैर रखना चाहिए न ही प्रेम। क्योंकि कुत्ता चाहे काट ले या चाट ले, दोनों ही नुकसानदेह है।, रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥51॥, अर्थ- चिंता चिता से भी बढ़कर है। इससे सावधान रहो। क्योंकि चिता तो निर्जीव को जलाती है। लेकिन चिंता तो जीवित व्यक्ति को भी जला देती है।, रहिमन कबहुँ बड़ेन के, नाहिं गर्व को लेस।भार धरैं संसार को, तऊ कहावत सेस॥52॥, अर्थ- ज्ञानी और समर्थ लोग लेशमात्र भी अहंकार नहीं करते। जैसे सारे संसार का भार धारण करने वाले शेष (शेषनाग) कहलाते हैं।, रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की धाक।दाँत दिखावत दीन ह्वै, चलत घिसावत नाक॥53।।, अर्थ- कवि कहता है कि हाथी जैसा बलवान कोई और नहीं होता फिर भी वह ईश्वर को बड़ा मानकर दीनों की तरह अपने दांत दिखाता है और चलते हुए अपनी नाक (जमीन) जमीन पर रगड़ता है।, रहिमन खोजे ऊख में, जहाँ रसन की खानि।जहाँ गॉंठ तहँ रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥54, अर्थ- प्रेम को समझना है तो गन्ने को देखो। जिसमें रस ही रस भरा रहता है। लेकिन उसमें जहां गांठ होती है वहां रस नहीं रहता। यही प्रेम में भी होता है।, रहिमन गली है साँकरी, दूजो ना ठहराहिं।आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं॥55॥, अर्थ- रहीमदास जी कहते हैं कि हृदय का रास्ता अत्यंत संकरा है। जिसमें दो लोग एक साथ नहीं चल सकते। या तो इसमें घमंड ही रह सकता है या फिर भगवान।, रहिमन चाक कुम्‍हार को, माँगे दिया न देइ।छेद में डंडा डारि कै, चहै नॉंद लै लेइ॥56॥, अर्थ- रहीम कहते हैं की कुम्हार का चाक मांगने से मिट्टी का दीपक भी नहीं देता लेकिन छेद में डंडा डालकर बड़ी बड़ी नांद भी ली जा सकती है।, रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।प्रीति करै मुख चाटई, बैर करे तन हानि॥57॥, अर्थ- इस संसार की क्या बड़ाई करना। यह कुत्ते की तरह है। जो प्रेम करने पर तो मुंह चाटता है। बैर करने पर काटने दौड़ता है।, रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥58॥, अर्थ- यह जीभ तो पागल है जो अच्छी बुरी बातें कह देती है और खुद तो अंदर रहती है। सजा सर को भुगतनी पड़ती है।, रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान सनमान।घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान॥59॥, अर्थ- रिश्तेदारों के यहां तभी तक ठहरना उचित है। जब तक उचित सम्मान मिलता रहे। जब सम्मान घटता हुआ प्रतीत हो तो तुरंत प्रस्थान कर देना चाहिए।, रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय।नैन बान की चोट ते, चोट परे मरि जाय॥60॥, अर्थ- तीर की चोट से तो व्यक्ति बच सकता है। लेकिन स्त्री के नैनों के बाण की चोट से नहीं बचा जा सकता।, रहिमन दुरदिन के परे, बड़ेन किए घटि काज।पाँच रूप पांडव भए, रथवाहक नल राज॥61॥, अर्थ- विपत्ति के समय बड़े बड़े लोगों को छोटे काम करने पड़ जाते हैं। जैसे पांडवों को अपना रूप बदलना पड़ा और राजा नल को सारथी बनना पड़ा।, रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥62॥, अर्थ- बड़ी वस्तुएं प्राप्त हो जाने पर छोटी चीजों को छोड़ नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां सुई का काम हो वहां तलवार कुछ नहीं कर सकती।, रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥63॥, अर्थ- प्रेम रूपी धागे को कभी तोड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि टूट जाने के बाद यह जुड़ता नहीं। अगर जुड़ भी जाये तो हमेशा के लिए गांठ पड़ जाती है।, रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥64॥, अर्थ- अपने मन का कष्ट अपने मन में ही छुपा के रखना चाहिए। लोग उसे सुनकर खुश ही होंगे, कोई उसे बांट नहीं लेगा।, रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।65॥, अर्थ- अपने धन के अलावा कुछ भी विपत्ति में काम नहीं आता। जैसे बिना पानी के कमल को धूप से कोई नहीं बचा सकता।, रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥66॥, अर्थ- रहीमदास कहते हैं कि पानी( सम्मान) बनाये रखना चाहिए। जैसे बिना पानी के मोती नहीं बन सकता, बिना पानी(सम्मान) के मनुष्य का कोई मूल्य नहीं और बिना पानी के चूना किसी काम का नहीं।, रहिमन प्रीति न कीजिए, जस खीरा ने कीन।ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फाँकें तीन॥67॥, अर्थ- ऊपर से दिखावटी प्रेम नहीं करना चाहिए। जैसे खीरा ऊपर से देखने में तो एक लगता है। लेकिन उसके अंदर तीन फांकें बनी होती हैं।, रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रँग दून।ज्‍यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून ||67॥, अर्थ- प्रेम सराहनीय है। ये दूसरे को भी अपने रंग में रंग लेता है। जैसे हल्दी लगने से रंग पीला और चूने से सफेद रंग हो जाता है।, रहिमन ब्‍याह बिआधि है, सकहु तो जाहु बचाय।पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥68॥, अर्थ- रहीम कहते हैं कि विवाह एक रोग है अगर इससे बच सको तो बच जाओ। ये ऐसी जेल है जिसमें ढोल बजाकर पैरों में बेड़ियां डाली जाती हैं।, रहिमन बहु भेषज करत, ब्‍याधि न छाँड़त साथ।खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥69॥, अर्थ- मनुष्य बहुत दवा करता है फिर भी रोग साथ नहीं छोड़ते। वन में रहने वाले जीवों को देखो, वे नीरोग हैं। सच है जिनका कोई नहीं उनके लिए भगवान हैं।, रहिमन बात अगम्‍य की, कहन सुनन को नाहिं।जे जानत ते कहत नाहिं, कहत ते जानत नाहिं॥70॥, अर्थ- ईश्वर को जानने की बात कहने सुनने के लायक नहीं। क्योंकि जो जानते हैं, वे कहते नहीं और जो कहते हैं वे जानते नहीं।, रहिमन बिगरी आदि की, बनै न खरचे दाम।हरि बाढ़े आकाश लौं, तऊ बावनै नाम॥71॥, अर्थ- अगर शुरुआत में बात बिगड़ जाए तो बाद में नहीं बनती। जैसे वामन भगवान ने बाद में अपना शरीर आकाश के बराबर बढा लिया। तब भी उनका नाम वामन ही रहा।, रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात।बड़े बड़े समरथ भए, तौ न कोउ मरि जात॥72॥, अर्थ- अगर दवाओं से मृत्यु को जीता जा सकता तो बहुत से समर्थ लोग कभी न मरते।, रहिमन यहि संसार में, सब सौं मिलिये धाइ।ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ॥73॥, अर्थ- रहीमदास कहते हैं इस संसार में सबसे प्रेम और सम्मान से मिलना चाहिए। क्योंकि न जाने किस रूप में ईश्वर मिल जाएं।, रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट ह्वै जात।नारायन हू को भयो, बावन आँगुर गात॥74॥, अर्थ- याचक बनने पर बहुत बड़ा व्यक्ति भी छोटा हो जाता है। राजा बलि से मांगने के लिए भगवान को 52 अंगुल का शरीर धारण करना पड़ा था।, रहिमन या तन सूप है, लीजै जगत पछोर।हलुकन को उड़ि जान दै, गरुए राखि बटोर॥75॥, अर्थ- यह शरीर सूप की तरह है। इससे संसार को छान लेना चाहिए। जो तुच्छ चीजें हैं उन्हें छोड़कर महत्वपूर्ण चीजों को इकट्ठा करना चाहिए।, रहिमन रहिबो वा भलो, जो लौं सील समूच।सील ढील जब देखिए, तुरत कीजिए कूच॥76॥, अर्थ- किसी जगह पर तब तक रहना ही ठीक है, जब तक इज्जत मिलती रहे। जैसे ही इज्जत में कमी लगे, तुरंत वहां से चल देना चाहिए।, रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥77॥, अर्थ- आंख से आंसू निकल कर मन का दुख सबके सामने प्रकट कर देते हैं। सच ही है जिसे घर से निकाल दिया जाय, वह घर के भेद तो बता ही देगा।, रहिमन अती न कीजिये, गहि रहिये निज कानि।सैजन अति फूले तऊ डार पात की हानि॥78॥, अर्थ- रहीम के दोहे कहते हैं कि किसी चीज की अति नहीं करनी चाहिए। स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए। जैसे- सहजन के वृक्ष पर अधिक फल फूल हो जाने पर उसकी नाजुक डालियाँ टूट जाती हैं।, रन, बन, ब्‍याधि, विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय।जो रच्‍छक जननी जठर, सो हरि गये कि सोय॥79॥, अर्थ- युद्ध में, जंगल में, विपत्ति में परेशान होकर रोना नहीं चाहिए। जिन ईश्वर ने मां के पेट में हमारी रक्षा की। क्या वे सो गए हैं?
काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति बिपरीति।।, अर्थ – रहीम दास जी इस दोहे में कहते हैं कि दुष्ट लोगों से ना तो मित्रता अच्छी है और ना ही दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे गुस्से में काटे या फिर प्यार से तलवे चाटे, दोनों इस स्थिति कष्टदायी होती हैं। दुष्ट लोगों से तो दूरी ही अच्छी है।, टूटे सुजन मनाइए , जो टूटे सौ बार। दोहा – “खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान.

Your email address will not be published. रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥eval(ez_write_tag([[300,250],'tiktoktip_com-large-mobile-banner-1','ezslot_20',140,'0','0'])); अर्थ:- जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।, बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥, अर्थ:- अपने मन से अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दूसरों को खुशी हो और खुद भी खुश हों।, मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय। फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥, अर्थ:- मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं परन्तु यदि एक बार वे फट जाएं तो करोड़ों उपाय कर लो वे फिर वापस अपने सहज रूप में नहीं आते।, रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत। काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥, अर्थ:- कम दिमाग के व्यक्तियों से ना तो प्रीती और ना ही दुश्मनी अच्छी होती है। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है।, रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥, अर्थ:- प्रेम के धागे को कभी तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि यह यदि एक बार टूट जाता है तो फिर दुबारा नहीं जुड़ता है और यदि जुड़ता भी है तो गांठ तो पड़ ही जाती है।, रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥, अर्थ:- इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।, वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥, अर्थ:- वे पुरुष धन्य हैं जो दूसरों का उपकार करते हैं। उनपे रंग उसी तरह उकर आता है जैसे कि मेंहदी बांटने वाले को अलग से रंग लगाने की जरूरत नहीं होती।. कहि रहीम पर काज हित ,संपति सँचहि सुजान।।, अर्थ – रहीमदास जी कहते हैं कि पेड़ अपने फल खुद नहीं खाता और समुद्र अपना पानी खुद नहीं पीता। रहीमदास जी कहते हैं कि सज्जन लोग हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं। परोपकारी लोग सुख संपत्ति भी केवल परोपकार के लिए ही जोड़ते हैं।, जे गरीब सों हित करें ,ते रहीम बड़ लोग। दोहा – “जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड | कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग |”, अर्थ : जो लोग गरिब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं.

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